Menu
blogid : 3669 postid : 647

“बड़ी तवील सी है ज़िंदगी”

सांस्कृतिक आयाम
सांस्कृतिक आयाम
  • 22 Posts
  • 2102 Comments

न हो सका ख़ुशी में शामिल तो मलाल नहीं

शुक्र है ग़म तो किसी का मैं यहाँ बाँट सका;


बड़ी तवील सी है ज़िंदगी जो ख़त्म ना हो

तन्हाईयों का ये वक़्त न मैं काट सका;


सारे दुःख-रंज मुझे छोड़कर चल दिए रस्ते

सारी दुश्वारियों को जी भर के आज डाँट सका;


खड़े ज़िंदगी के चौक पर सोचा तो पाया उम्र  से इस

हूँ ख़ुशनसीब जो कुछ अनमोल लम्हे छांट सका;


वो मेरा दोस्त था क़रीब फिर भी दूर बहुत

जो फ़ासिले थे दरमियाँ न उन्हें पाट सका;


आज हूँ तंगहाल-तंगदस्त क्यूँ,  जानते हो?

मेरा ख़ुद्दार ज़मीर तलवे कभी न चाट सका;

===================================================

तवील=लंबी; तंगदस्त=हाथ तंग होना/रुपये-पैसे न होना;

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply to Vasudev TripathiCancel reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh