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नींद के खेतों में हम हरदम
फ़सल ख़्वाब की बोते थे,
माँ की गोद में सर रख कर हम
सारी रातें सोते थे;
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आज नहीं है कोई सपना रातें
ख़ाली-ख़ाली सी,
बचपन की छोटी रातों में
सपन सजीले होते थे;
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अंतरतम में प्यास दहकती किस विधि
तृप्त करूँ इसको,
ओस की बूंदों से हर सुबह हम
बोझिल पलकें धोते थे;
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हर ख़्वाहिश पूरी है लेकिन फिर भी सुकूँ
नहीं अब दिल को,
तब दिल इतना बड़ा था कि हर
छोटी ख़ुशी संजोते थे;
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आज ये आलम के काटो तो किसी भी
रग में ख़ून नहीं,
छोटी सी झिड़की पर तब हम
घंटों-घंटों रोते थे;
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प्यार के बादल का छोटा सा टुकड़ा भी
द्रष्टव्य नहीं,
जिसकी बारिश में हम सबको
सारा वक़्त भिगोते थे;
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कहाँ गई वो पौध स्नेह की, कहाँ प्रेम
की हरियाली,
कई बरस तक जिनकी ख़ातिर ये
बंजर खेत भी जोते थे;
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लौट नहीं पाया वो बचपन, यौवन लक्ष
हुए क़ुर्बान,
जब घर में राहत पाकर हम
सारे रंजो-ग़म खोते थे;
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