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“वो तमाशा देखता है”

सांस्कृतिक आयाम
सांस्कृतिक आयाम
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हारा ख़ुद को पर तुझे मैं जीत ना सका

हर लम्हा है अब तो देखो मेरी सांस सा रुका;

*

सोचता नहीं था मैं पर जब भी पूछा सोच कर

दे  दिया उसने मुझे वही जवाब एक टका;

*

है मुक़द्दस प्यार का जज़्बा ये मेरा ऐ हबीब

क्यूंकि इसमें है भरा सिर्फ़ो सिर्फ़ ज़िकर तेरा;

*

ज़िंदगी में तय किये हैं मुक़ां कई चलते हुए

इसलिए लगता है तुमको शख़्स ये थोड़ा थका;

*

कुछ न कुछ दे जाएँगे हम ख़ाक़ हो कर भी तुझे

जैसे पिस कर भी, हथेली, सुर्ख़ बनाए हिना;

*

है धुआँ-गर्दो ग़ुबार चार सू मुश्किल बड़ी

है ज़रुरी साँस लेना, चाहिए ताज़ा हवा;

*

बेसबब भटक रहा हूँ मैं तुझी को ढूँढता

काश  बता देती मुझे तू ज़िंदगी अपना पता;

*

देखा तुझको भी बहुत और शानो शौक़त भी तेरी

अब दिखाना है जो मुझको, तू अपनी दोस्ती दिखा;

*

हाँ गुज़ारी ज़िंदगी, है बहुत मिज़ाज से मगर

शौक़ बचपन का अभी है एक छोटा सा बचा;

*

बस भी कर कोई तवज्जह देने वाला है नहीं

राग जो छेड़ा है तूने, है सरासर बेतुका;

*

दिल दिया उसको ही मैंने, और जाँ भी नाम की

मुझको लेकिन इतने पर भी कहता है वो बेवफ़ा;

*

शमअ़ जलती है घरों में, रास्ते हैं स्याह क्यूँ

इन अंधेरे रास्तों में रौशन करो कोई दिया;

*

जिसको समझा सरपरस्त सर-ता-पा* ‘वाहिद’ यहाँ

वो तमाशा देखता है, मेरी बस्ती को जला;

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*सर-ता-पा = सर से पैर तक, शुरू से आख़िर तक

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